मंगलवार, अप्रैल 23, 2024

Holi 2023: date, time and Holika dahan Muhurat 2023

राधा का रंग कान्हा कि पिचकारी

प्यार के रंग से रंग दो दुनिया सारी

यह रंग ना जानें ना कोइ जात ना कोइ बोली

मुबारक हो आपको रंगो भरी होली।।१।।

🙏 Happy Holi

holi 2023 kab hai: आपके और आपके परिवार को इस रंग भरे होली के त्यौहार पर बहुत सारी शुभकामनाएं। दोस्तों आप सभी को तो पता है कि हमारा देश त्योहारों का देश है जहां कभी फूलों का, कभी रंगो का तो कभी खुशियों से भरे पर्व मनाए जाते हैं। इन्ही सब त्यौहारों में से रंगो का यह पावन पर्व होली बहुत ही विशेष है। हिंदू धर्म में दीवाली के पर्व को सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है और दीवाली के बाद होली हिंदू धर्म का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है। आज की हमारी यह पोस्ट इसी होली के त्यौहार को लेकर है जिसमें हम जानेंगे कि 2023 में होली कब है (2023 holi date kab hai), होलिका दहन कब है(holika dahan date 2023), होलिका दहन मुहूर्त(holika dahan Muhurat), होलिका दहन की विधि(holika dahan pujavidhi) आदि के बारे विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे।

Holi kab hai 2023

Holi date 2023: हिंदी कैलेंडर के अनुसार होलिका दहन फाल्गुन मास की पुर्णिमा तिथि को किया जाता है और रंगो का पर्व होली उसके अगले दिन यानि चैत्र मास की प्रतिपदा को मनाया जाता है।

Holika dahan 2023 date: इस बार होलिका दहन 7 मार्च 2023, मंगलवार के दिन किया जाएगा और और रंगो से भरा पर्व होली 8 मार्च 2023, बुधवार के दिन मनाया जाएगा।

Holika dahan muhurat 2023

हिंदू पंचाग के अनुसार होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा के तिथि को प्रदोष काल में किया जाता है। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है और उसके अगले दिन रंग वाली होली या धूलंडी खेली जाती है।

Holi kab hai 2023
Holika Dahan

Holika dahan 2023 date and time: इस बार 2023 में होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 7 मार्च, मंगलवार को शाम 06:31 से रात 08:58 बजे तक रहेगा। इस दौरान होलिका दहन किया जा सकेगा। होलिका दहन के इस पर्व को छोटी होली भी कहते हैं।

Happy Holi date 2023: होलिका दहन के दुसरे दिन यानि 8 मार्च, बुधवार के दिन रंग भरी होली खेली जायेगी। इस दिन लोग द्वेष भावना को भूलकर आपस में एक दुसरे को रंग लगाकर होली की बधाईयां देते हैं। होली का यह पर्व एकता की भावना को प्रकट करता है।

Holika Dahan pujavidhi

फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन के लिए कुछ विशेष तैयारियां करनी होती हैं। होलिका दहन के दिन सुबह खेजड़ी वृक्ष की एक टहनी चौराहे के बीच में लगा दी जाती है। और इस शाखा के चारों ओर गोबर के खिलौने, लकड़ियां, उपले आदि लगा देते हैं। दिन में सुहागिन स्त्रियां इसकी पूजा करती है। इस टहनी के चारों ओर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है। और इसके चारों तरफ परक्रिमा दी जाती है। इस दिन सभी विवाहित स्त्रियां व्रत रखती है और शाम को होलिका दहन की अग्नि को देखकर अपना व्रत तोड़ती है।

शाम को होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में होली को अग्नि दी जाती है। इसी दौरान खेजड़ी वृक्ष की टहनी को उखाड़ लिया जाता है और पानी में डाल दिया जाता है। होलिका दहन की लपटों में नए अनाज या कहे तो जौ की बाल को भुना जाता है।

और उसके बाद अंत में होलिका के चारों ओर 7 चक्कर लगाकर परिक्रमा दी जाती है।

इस दिन भगवान विष्णु के भगत पहलाद और उसकी बुआ होलिका की पूजा की जाती है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि होलिका, जो कि हिरण्यकश्यप की बहन थी, को एक वरदान प्राप्त था जिससे वह आग में भस्म नही हो सकती थी। होलिका ने अपने भतीजे पहलाद को अपनी गोद में बैठा कर अग्नि में समा गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से भक्त पहलाद बच गया और होलिका आग मे जलकर भस्म हो गई। होली का यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

होलिका दहन के अगले दिन रंगो की होली खेली जाती है।

ब्रज और मथुरा की लट्ठमार होली विश्व प्रसिद्ध है। लट्ठमार होली में महिलाएं पुरुषों पर लट्ठ बरसाती हैं और पुरुष ढाल से अपनी रक्षा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में राधा और कृष्ण लट्ठमार होली खेलते थे। नंदगांव के ग्वालो पर बरसाने की गोपियां लाठिया बरसाती थी और ग्वाले उन पर रंग बरसाते थे। तभी से यह परंपरा निभाई जा रही है।

होली का महत्व

Holika Dahan date and time
Happy Holi

भारतवर्ष में हर कोई त्यौहार अपना एक अलग महत्व रखता है। होली का यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। होली क्यों मनाई जाती है, इसके बारे में तो आप जान ही गए होंगे। हम आपको कुछ और विस्तार से बता देते हैं कि भक्त पहलाद और उसकी बुआ होलिका के अग्नि में बैठने के बाद होलिका भस्म हो जाती है लेकिन पहलाद बच जाता है इसी कारण होलिका दहन किया जाता है लेकिन जब हिरण्यकश्यप की मृत्यु हुई यानि भगवान विष्णु ने अपने जांघ पर हिरण्यकश्यप को बैठाकर अपने नाखूनों से नष्ट किया, तो उसके बाद नगर वासियों ने आपस में रंग लगाकर बधाई दी। तभी से यह रंगो का त्यौहार मनाया जाता है।

इस दिन सभी लोग आपस के मतभेद को मिटाकर आपस में रंग लगाते हैं। और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं।

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